Thursday, June 3, 2021

हिन्दी शिक्षण में दृश्य श्रव्य साधनो का महत्व l

JUNE 03,2021


हिन्दी शिक्षण में दृश्य श्रव्य साधनो का महत्व

अध्यापन के दौरान पाठ्य सामग्री को समझाते समय शिक्षक जिन-2 सामग्रियों का प्रयोग करता है वह सहायक सामग्री कहलाती है। किन्तु आधुनिक शिक्षा प्रणाली में सहायक सामग्री के संबंध में कई नवाचार हुए है जिनकी सहायता  से अध्ययन को रोचक व प्रभावपूर्ण बनाया जा सकता है। इन सामग्रियों द्वारा सीखा ज्ञान न केवल छात्रों में उत्साह जागृत करता है वरन् सीखे हुए ज्ञान को लंबे समय तक अपने स्मृति पटल में संजोए रख सकता है। दूसरी और शिक्षक भी अपने अध्यापन के प्रति उत्साहित रहता है। परिणाम स्वरूप कक्षा का वातावरण हमेशा सकारात्मक बना रहता है।
                          
अध्यापन में  पाठ्य सामग्री की  महत्व अधिक है l मौखिक अभिव्यक्ति के द्वारा शिक्षण करना प्राचीन  रीति  है l आधुनिक युग में सभी क्षेत्र तकनीक युक्त बन गया है l  ऐसे अवसर में शिक्षा क्षेत्र भी तकनीक से भरना आवश्यक है l सहायक सामग्री के द्वारा अध्ययन कार्य को रोचक एवं प्रभावशाली बन सकता है  l

शिक्षण  सामग्रियों  के प्रयोग से केवल छात्र ही नहीं अध्यापक भी अध्ययन के प्रति उत्साहित रहता है l सहायक  सामग्रियों  के प्रयोग के द्वारा कक्षा संचालन  भी कर  सकता है l शिक्षण एक  बहुमुखी प्रक्रिया है l शिक्षा प्रणाली को रोचक आकर्षक प्रभावशाली बनाने के लिए विभिन्न प्रकार के साधनों का प्रयोग किया जाता है l शिक्षक के विशिष्ट एवं व्यापक लक्ष्यों  के  प्राप्ति के लिए बहुत शिक्षण  साधनों का अध्ययन अध्यापन प्रणाली में उपयोग किया जाता है l आजकल शिक्षण प्रक्रिया में दृश्य श्रव्य साधनों के प्रयोग पर ज्यादा  बल दिया जा रहा है  l 
                       
दृश्य श्रव्य सामग्री का प्रयोग छात्र और विषय सामग्री के मध्य अन्त:क्रिया को तीव्रतम गति पर लाकर छात्रों को  शिक्षोन्मुखी तथा जिज्ञासु  बनाती है l

सहायक सामग्री के प्रयोग के उद्देश्य

* छात्रों के पाठ में प्रति रूचि जाग्रत करना।
* बालकों में तथ्यात्मक सूचनाओं को रोचक ढंग से प्रस्तुत करना।
* सीखने की गति में सुधार करना।
* छात्रों को अधिक क्रियाशील बनाना।
* अभिरूचियों पर आशानुकूल प्रभाव डालना।
*तीव्र एवं मन्द बुद्धि छात्रों को योग्यतानुसार शिक्षा देना।
* जटिल विषयों को भी सरस रूप में प्रस्तुत करना।
* बालक का ध्यान अध्ययन (पाठ) की ओर केन्द्रित करना।
* अमूर्त पदार्थों को मूर्त रूप देना।
* बालकों की निरीक्षक शक्ति का विकास करना।

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